भूत वाली कहानी डरावनी बहुत होती है। भूतिया कहानियां सुनने के बाद हम डर जाते है। हम सोचते है की भूतिया कहानी, Bhutiya Kahani का भूत रात को आकर हमे उठा ले जायेगा। रात को सुनायी देने वाली आवाज को हम भूत की आवाज समझते है। भूत वाली फिल्म देखने के बाद भी ऐसा ही होता है।
भूतिया कहानियां की कड़ी में आज हम आपको भूतों की कहानी सुनाने वाले है। श्मशान घाट का भूत , भूत को बंदी बनाया, भूतों की आत्मा, bhut ki kahani
श्मशान घाट वाला भूत | भूतिया कहानियां
उत्तराखंड के पीरगढ़ गांव में अब्दुल और उसका दोस्त रहते थे। अब्दुल बेहद ही अब्दुल बहुत निडर और साहसी था। वह अपने दोस्तों के साथ साहस और निडर होकर बातें करता था। और प्रतिस्पर्धा वाला खेल खेलता था। पीरगढ़ गांव में कुछ दिनों से भूत की चर्चा हो रही थी। गांव के बाहर एक श्मशान घाट था। जहां पर भूत को देखे जाने की बात पूरे गांव में फैल रही थी।अब्दुल के दोस्तों ने भी भूत के बारे में बातें करना शुरू कर दिया। अब्दुल ने निडर होकर कहा
अब्दुल - भूत वूत कुछ नहीं होता। यह सब हमारे मन का वहम होता है। लेकिन अब्दुल के साथी कहते है। कि भूत होता है। गांव के बाहर के श्मशान घाट में तुम जाकर भूत को देख सकते हो।
अब्दुल कहता है क्यों नहीं मैं भूत से डरता थोड़ी ना हूं। सभी ने शर्त लगाई कि अब्दुल रात के अंधेरे में जाकर श्मशान घाट में किले गाड़ कर आएगा। और सुबह सभी को वह कीले दिखाएगा जो उसने रात में गाड़ेगा।
रात को अब्दुल अपने दोस्तों के साथ श्मशान घाट की तरफ निकल जाता है। अमावस्या की काली रात थी जिसमें अपना हाथ भी नहीं दिख रहा था। रास्ते में अब्दुल को कुछ शंका होने लगी और लोगों की बताई गई भूतिया कहानियां उसके दिमाग में धीरे-धीरे चलने लगी।
श्मशान घाट वाले भूत, भूतों की कहानियां, श्मशान घाट के पास भूत देखा था जैसी कितनी ही अनगिनत कहानियां अब्दुल के दिमाग में चलने लगी। लेकिन यदि अब्दुल उसी समय वापस लौट कर घर जाता तो सभी उसका मजाक बनाते है।
अब्दुल श्मशान घाट पहुंचने ही वाला था। इस समय अब्दुल की स्थिति एक तरफ कुआं एक, तरफ खाई जैसी थी। लौटकर जाने में जग हंसाई होती और श्मशान घाट में भूत से सामना। लेकिन निडर होकर अब्दुल श्मशान घाट पहुंच जाता है।
श्मशान घाट में नीचे बैठकर अब्दुल कील को जमीन में गाड़ने लगता है। अब्दुल कील गाड़ने के लिए हथौड़ी लेकर आया था। हथौड़ी से आवाज ज्यादा होती है इसलिए वह धीरे धीरे कील को जमीन में गाड़ रहा था।
जैसे तैसे अब्दुल ने हथौड़ी से कील को जमीन में गड़ा दिया। और निडर होकर फुटकर जाने के लिए तैयार हो गया। तभी अब्दुल को एहसास हुआ कि उसके कुरते को नीचे से कोई खींच रहा है । अब्दुल का पूरा शरीर ठंडा हो गया हाथ पैर कांपने लगे।वह वहीं बेहोश होकर गिर गया।
अब्दुल के दोस्त जो अब्दुल के साथ ही आए थे। उन लोगों ने देखा तो वह अब्दुल जल्दी से उसको उठाकर गांव की ओर ले गए। गांव में जाकर अब्दुल के चेहरे पर पानी के छींटे मारे। थोड़ी देर में अब्दुल को होश आ गया। वह डरते डरते उठा और उसने देखा कि अब वह गांव में है।
अब्दुल ले अपने दोस्तों को बताया कि मैंने श्मशान घाट में कील को जमीन में गाड़ दिया था। लेकिन जैसे ही उठने लगा तो कोई मेरा कुर्ता खींच रहा था।
जिसके कारण मैं बहुत डर गया था। तभी अब्दुल के दोस्तों बोलते है कि उसका कुर्ता किसी भूत ने नहीं खींचा बल्कि अब उसने खुद ही कील को कुर्ते के ऊपर से जमीन में गाड़ दिया था। और जब मैं खड़ा होने लगा तो कील में फंसा होने के कारण कुर्ता खींचा हुआ महसूस हुआ।
अब्दुल सभी लोगों से माफी मांगता है लेकिन सब लोग अब्दुल के साहस और निडरता से बहुत प्रसन्न हुई है और उसको शाबाशी देते है।
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भूत को बंदी बनाया | भूतिया कहानियां | Bhuto Ki Kahani
पितृ पक्ष का समय था। एक ब्राहमण अपनी पत्नी को लेने अपने ससुराल जा थे। रास्ते में ब्राहमण को एक व्यक्ति मिलता है।
व्यक्ति पूछता है - पंडित जी कहा जा रहे है।
पंडित जी - मैं अपने ससुराल अपनी पत्नी को लेने जा रहा हु।
व्यक्ति - पंडित जी पितृपक्ष का माह चल रहा है। और इस महीने में कोई भी शुभ कार्य नही किए जाते।
ब्राहमण अवाक होकर बोला - ये नियम ब्राहमणों पर लागू नहीं होते।
वह व्यक्ति चुपचाप अपने रास्ते निकल जाता है।
पंडित जी ससुराल पहुंचे और खूब खातिरदारी करवाने लग गए।
जब विदाई का समय आया तो ससुराल वाले मना कर देते है।
ससुराल वाले - अभी पितृपक्ष माह चल रहा है। इस माह में कन्या को विदाई करना अपसगुन होता है।
लेकिन पंडित जी अपनी जिद पर अड़े रहे। मैं अपनी पत्नी को आज ही लेकर जाऊंगा।
ससुराल वाले जिद मानकर अपनी बेटी की विदाई कर देते है। पंडित जी अपनी पत्नी को लेकर घर की और निकल जाते है।
चलते-चलते पंडित जी को प्यास लगती है। पंडित जी कुएं के पास जाकर पानी निकल कर पीते है।
तभी एक व्यक्ति पंडितजी के पास आता है और पानी पिलाने का निवेदन करता है।
पंडित जी जैसे ही लौटा पानी भरने के लिए कुएं में डालता है। वह अनजान व्यक्ति पंडित जी को कुएं में फेंक देता है। और खुद पंडित जी का भेष बनाकर पंडित जी की पत्नी को लेकर पंडित जी के घर चला जाता है।
घर पर दोनो पति पत्नी का अच्छा स्वागत हुआ। दोनो हंसी खुशी देने लगते है। करीब दो महीने बीत गए। इधर पंडितजी कुएं में फसें हुए दुबले पतले हो गए।
एक व्यापारी रास्त से जा रहा था। बैलगाड़ी के बैलों में अटकी हुई घंटी बज रही थी। घंटी सुनकर पंडित जी को उम्मीद जगी। वो जोर-जोर से चिल्लाने लगे। "मेरी मदद करो"।
व्यापारी घबरा जाता है। कुएं में कैसी आवाज आ रही है। यह भूत की आवाज है।
व्यापारी डरते डरते कुएं के पास गया। पंडित जी ने सारी बात बताई। कैसे उनको धोखे से इस कुएं में गिरा दिया गया। व्यापारी ने पंडित जी को कुएं से बाहर निकाला। पंडित जी अपने घर को जाते है।
तभी पंडित जी ने देखा की वहां उनके ही भेष में एक व्यक्ति उनके पिताजी के साथ काम कर रहा है।
सभी लोग उस बहरूपिए को ही पंडित जी मानने लग गए थे।
पंडित जी अपने पिता को सारी बात बताते है की उनके साथ दिए धोखा हुआ। पंडित जी के पिता उनकी बात का भरोसा नहीं करते है। सभी लोग बहरूपिया को ही पंडित जी समझ रहे थे। अब दोनों में झगड़ा होने लग गया - मैं असली हूं... तू नकली है
धीरे-धीरे झगड़ा बढ़ने लग गया सभी लोग राजा के पास न्याय के लिए जाते है।
राजा कहता है कि न्याय करने से पहले एक ऊंचा चबूतरा बनवाया जाए और राज्य के सभी लोगों को बुलवाया जाए। राजा के कहे अनुसार कार्य किया जाता है और राजा के न्याय को देखने के लिए सभी को बुलाया जाता है।
राजा ने न्याय के लिए एक लौटा भी मगवाया। राजा ने दोनो पंडित जी से पूछा कि असली पंडित जी कौन है?
दोनो ने कहा - मैं असली.... मैं असली
राजा कहता है की जो भी लौटे में घुसकर बाहर निकलेगा वो ही असली पंडित जी होगा। तभी एक पंडित जी झट से लौटे में घुस गए। राजा ने तुरंत लौटे का मूंह बंद कर देता है। मूंह बंद करते ही भूत चिल्लाने लगा। मुझे माफ कर दो। मुझसे गलती हो गई।
सभी लोगों को असली पंडित जी का पता चल गया। क्योंकि भूतिया पंडित जी लौटे में बंद हो गए। वह भूत था जो पंडित जी के पितृपक्ष में किए गए कार्य का दंड देने के लिए आया था।
इसलिए कोई भी कार्य पितृ पक्ष में नहीं करना चाहिए। बुज़ुर्ग ऐसा मानते है। समय की भी बात होती है। सभी नियमों का कोई नुकसान नहीं होता। विधि विधान का ध्यान रखें।
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जादुई बांसुरी की कहानी | भूतिया कहानियां | Bhuto Ki Kahani
राजा मानसिंह के शासनकाल में उनका राज्य बहुत खुशहाल था। सभी प्रजाजन खुशी से रहते थे। राजा का बहुत आदर सम्मान करते थे। सभी किसान खुश रहते थे। लोगों में जरा सी भी ईर्ष्या नहीं थी। सभी प्रजाजन भाईचारे से रहते थे।
मानसिंह के राज्य में सुंदर सुंदर बागान थे। जहां तरह तरह के फूल खिलते थे । यहां अभ्यारण भी थे। जहां सुंदर सुंदर पक्षी, पशु रहते थे।
राजा मानसिंह बहुत धर्मात्मा थे। पूजा पाठ उनकी दिनचर्या में शामिल था।
सिंह ने राजा मानसिंह ने राज्य में धार्मिक का का कार्यों का विशेष ध्यान रखते थे। राज्य में बिल्कुल राज्य में सब कुछ बिल्कुल सही चल रहा था। लेकिन कुछ महीनों से लोग डरे हुए थे। अपनी असुरक्षा को लेकर बहुत परेशान थे। क्योंकि राज्य की फसलें खराब हो रही थी। घर में सामान सुरक्षित नहीं था। जीवन जीने के लिए जरूरी चीजें भी नहीं मिल पा रही थी।
पुरा राज्य अदृश्य शक्तियों, भूतिया शक्तियों की वजह से परेशान था। जिसके कारण लोग विवश होकर राज्य को छोड़ने लगे थे। राजा मानसिंह को जब यह पता लगा तो उन्हें भी यह चिंता सताने लगी। बिना प्रजा कैसा राज्य है? यदि राज्य में कोई प्रजा ही नहीं रहेगी तो राज्य का अस्तित्व ही नहीं रहेगा ना ही कोई वजूद होगा।
राज्य एक भुतहा खंडहर के अलावा कुछ भी नहीं होगा।
मानसिंह प्रजा की परेशानी समझ कर बहुत परेशान थे। राजा ने अपने पुरोहितों को बुलाया और राज्य के संकट के बारे में सारी बात बताई। ज्योतिष शास्त्रों का भी सहारा। राजा ने लिया काफी मनन करने के बाद यह बात सामने आई कि राज्य में कुछ अदृश्य शक्तियां मोतिया शक्तियां जागृत हो गई है। जो जनता को परेशान कर रही है। इन भूतिया शक्तियों को राज्य से निष्कासित करना होगा या उन्हें समाप्त करना होगा। जिससे कि राज्य फिर से खुशहाल हो जाए।
सभी ज्योतिष शास्त्र एवं पुरोहितों ने विचार-विमर्श करके निर्णय किया। इस कार्य के लिए आश्रम के सिद्ध तपस्वी को बुलाया जाएगा। उनके मदद से ही इस वित्तीय संकट को हटाया जा सकता है। राजा खुद पैदल चलकर तपस्वी के आश्रम गए और उन्हें दंडवत प्रणाम करके राज्य में आ रही सभी परेशानियों और अदृश्य जागृत हुई अदृश्य शक्तियों के बारे में बताया।
तपस्वी राजा की बात सुनकर उनकी सहायता करने के लिए तैयार हो जाते है। तपस्वी राजा को आश्वासन देते हैं कि अदृश्य शक्तियों को राज्य से बाहर निकालने में वह राजा की मदद करेंगे राजा मानसिंह तपस्वी की बात सुनकर आश्वस्त हो जाते है। तपस्वी ने उनको वचन दिया है अदृश्य शक्तियों से तपस्वी ही राज्य को बाहर निकालेंगे।
सुबह होते ही पूरे राज्य में एक मधुर ध्वनि सुनाई देती है। सभी लोग यह सोच रहे थे कि इतनी मधुर ध्वनि कहां से आ रही है जो इतनी आकर्षक और मनमोहक है। सभी लोग आश्चर्य होकर से मनमोहक और आकर्षित करने वाली धनी का स्रोत ढूंढने लगते है।
लेकिन यह मधुर धोनी अदृश्य शक्तियों से बिल्कुल भी सहन नहीं हो रही थी। इस मधुर ध्वनि की वजह से अदृश्य शक्तियां परेशान हो गई और ध्वनि के स्रोत के पास जा पहुंची।
जब सभी अदृश्य शक्ति है वहां पहुंचती है तो तपस्वी बांसुरी से बजाकर बांसुरी से इस मधुर मधुर ध्वनि को बजा रहे है। उन अदृश्य शक्तियों ने तपस्वी को बांसुरी बजाने से मना किया लेकिन अदृश्य शक्तियों की बातें अनसुनी कर तपस्वी निरंतर मधुर ध्वनि बजा रहे थे क्योंकि इस मधुर वाणी से अदृश्य शक्तियों की शक्ति कमजोर हो रही थी।
तभी सभी अदृश्य शक्तियों ने मिलकर तपस्वी पर एक साथ हमला कर दिया। लेकिन कोई भी सफल नहीं हो पाया।
क्योंकि तपस्वी सिद्ध पुरुष थे। तपस्वी को नुकसान पहुंचाना इन अदृश्य शक्तियों भूतिया शक्तियों के वश में नहीं था।
बहुत कोशिश करने के बाद सभी भूत हाथ जोड़कर तपस्वी के सामने खड़े हो जाते है। और अपने अस्तित्व को रक्षा करने के लिए प्रार्थना करने लगते है।
तपस्वी ने एक शर्त पर सभी को आजाद करने का वचन लिया। यदि वे सभी भविष्य में किसी को परेशान नही करेगी। राज्य से दूर चली जायेगी।
राजा मानसिंह पुनः आते है और तपस्वी को दंडवत प्रणाम करते है। सभी प्रजाजनों ने भी तपस्वी का धन्यवाद किया।
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