भूतिया खंडहर की कहानियां | भूतिया कहानियां | Real Ghost Stories In Hindi

बहुत से लोग bhoot ki kahaniya पढ़ते है। क्योकि उनमे भूतिया कहानियां को लेकर बहुत रूचि होती है। वही कुछ लोग Bhooton Ki Kahani पढ़ना तो दूर, भूतों के नाम से ही डर जाते है। 

आप सभी ने भूतिया कहानियां, bhooto wali kahani, भूतों की हवेलीचुड़ैल की कहानी, भूतिया खंडहर ,bhoot ki kahaniya तो जरूर सुनी होंगी।   

आज हम आपको अच्छे भूत की कहानी सुनाएंगे। सभी भूत बुरे नहीं होते। कुछ आत्माएं अच्छी भी  होती है। 

ये कहानी एक भूतिया खंडहर के बारे में है। लेकिन खंडहर कोई भूतिया किला, या भूतिया महल नहीं है बल्कि सैनिकों का हॉस्पिटल है। जो आज जंगल में खंडहर बना हुआ है। 

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भूतिया खंडहर की कहानी

भूतिया खंडहर की कहानी | मजेदार भूत की कहानी

यह बात उन दिनों की है जब मैं कॉलेज में था। कॉलेज की ओर से हम सभी कैम्प करने के लिए एक जंगल में गए थे। 

उन दिनों हल्की ठंढ थी। हम सबने पूरी रात कैम्प – फायर के साथ डांस करने और गाने आदि का प्रोग्राम तय किया। 

मुझे और मेरे सभी साथियों को कैम्प आग जलाने के लिए लकडियाँ लाने का काम सौंपा गया। 

हम सब साथ निकले थे लेकिन मैं जंगल के प्राकृतिक सौन्दर्य में भटकता हुआ अकेले ही बहुत दूर निकल गया था।

अचानक आसमान बादलों से भर गया और भारी गर्जना के साथ बारिश होने लगी।

बारिश तेज हों लगी तो मैने पेड़ के नीचे खड़ा रहना सही नही समझा। और आसपास किसी घर की तलाश करने लगा। 

तभी कुछ दूर लाल ईंटों से बना एक शानदार घर दिखाई दिया। घर बारिश से पूरी धूल चुका था। ऐसा लग रहा था जैसे उस घर में ढेर सारे लोग रहते है। 

मैं तेजी से भागता हुआ उस बिल्डिंग में घुस गया। और सामने से आती हुई एक खुबसूरत नर्स से टकराते टकराते बचा।

नर्स ने मुझे घूर कर देखते हुए कहा - बहुत ज्यादा भीग गए हो ,सर्दी लग जायेगी। 

उधर बाईं तरफ एक स्टोर रूम है। वहां जो भी मिले उससे कहना सिस्टर जूलिया ने सूखे और साफ़ कपडे मुझे देने को कहा है, वह तुम्हे कपडे दे देगा।

मैं हक्का – बक्का मुंह फाड़े सिस्टर जूलिया को देखता रहा। मुझे समझ नहीं आया कि मैं क्या करूँ।

मेरी स्थिति देखकर सिस्टर जूलिया खिल-खिलाकर हंस पड़ी और बोली – पहले तो तुम अपना मुंह बंद करो वरना मुंह में मच्छर घुस जायेंगे और अब जाकर जैसा कहा हैै वैसा करो ।

मैंने हल्के से ‘हाँ ‘ में सर हिला। सिस्टर जूलिया की बताई दिशा में जाने को मुड़ गया।

अभी कुछ दस कदम ही चला था की किसी ने मेरे कंधे पर किसी ने हाथ रखा। 

मैं चौंककर पीछे मुड़ा और मेरे सामने आर्मी की वर्दी में मुस्कुराता हुआ एक युवक खड़ा था।

मेरा आश्चर्यचकित चेहरा देखकर उस युवक को हंसी आ गई। 

उसने दृढ स्वर में धीमे से कहा – मैं कैप्टन विनोद। यह हमारे देश की आर्मी का हॉस्पिटल हैै। 

कैप्टन विनोद की बातें सुनकर मैं आश्वस्त हो गया। 

मैं धीरे – धीरे सामान्य हो गया। मैंने कैप्टन विनोद को सिस्टर जूलिया की कही बातें बताई। 

मेरी बात सुनकर, कैप्टन विनोद के चेहरे पर रहस्यमयी मुस्कान आ गई। 

कैप्टन विनोद बोले – तुम सिस्टर जूलिया से भी मिल चुके।

जी,क्या मतलब है आपका ? 

कुछ नहीं, चलो मैं तुम्हे सूखे कपडे देता हूँ। तुम कपड़े चेंज कर लो नहीं तो सच में सर्दी लग जायेगी। 

मैं कैप्टन विनोद के पीछे – पीछे एक बड़े से कमरे में पहुँच गया। कमरे के चारो ओर हरे रंग के परदे लगे हुए थे। 

एक तरफ बड़ा सा बेड पडा हुआ था। बेड के सामने एक सोफा था। 

बीच में एक टेबल था। जिस पर दो ग्लास ,एक बड़ी बोतल ब्रांडी की और एक–दो पत्रिकाएं पड़ी हुई थी। 

कमरे के एक कोने में बड़ी सी अलमारी थी। जिसमें से कैप्टन विनोद ने मेरे लिए आसमानी रंग का कुरता – पायजामा निकालकर मुझे दिया। और कमरे से लगे बाथरूम की तरफ इशारा किया। 

मैं बाथरूम से कपडे बदल कर जैसे ही निकलने लगा मेरी नजर बाथरूम की एक दीवार पर पड़ी| 
वहाँ खून के छींटों से भरी हुई थी। 

यह देखकर मैं घबरा गया और जल्दी से बाहर निकलने को मुड़ा ही था कि बाथरूम में लगे आईने में खुद को ही देखकर डर गया।

क्योंकि आईने में मेरा पूरा शरीर तो नजर आ रहा था लेकिन मेरे शरीर पर से मेरा सर गायब था। 

अब मुझे डर लगने लगा और मैं हडबडा कर बाथरूम से निकल गया। 

मुझे इस तरह बाहर निकलते हुए देखकर कैप्टन विनोद ने हंसकर पूछा – क्या हुआ? 

अरे हाँ, तुम ने तो अभी तक मुझे अपना नाम ही नहीं बताया।

मैं वहा से निकलने लगा।

तभी कैप्टन विनोद बोले – कहाँ जाओगे, बाहर बहुत तेज बारिश हो रही है। लेकिन अचानक तुम जाना क्यों चाह रहे हो। यह मैं समझ नहीं पा रहा। 

मैने कैप्टन विनोद से कहा – आपकी बाथरूम की पूरी दीवार खून के छींटों से भरी हुई है। और बाथरूम में लगा आईना भी कुछ अजीब है।

उसमें मुझे मेरा पूरा शरीर तो दिखाई दिया, लेकिन मेरा सिर ही गायब था। 

अब मैं यहां बिलकुल भी नहीं रुकुंगा। बारिश में ही भीगता हुआ ही अपने कैम्प तक जाऊँगा।

यह कहते हुए मैं कमरे से बाहर जाने वाले दरवाजे की तरफ बढ़ने लगा।

रुको... तभी कैप्टन विनोद की कडकती आवाज गूंजी।तो आखिरकार तुमने सब कुछ देख ही लिया।

जी क्या मतलब है आपका? डर के मारे मेरी आवाज दब रही थी। 

मतलब चाहे जो हो। तुम तब तक यहाँ से नहीं जा सकते जब तक मैं तुम्हे कुछ बता न दूं। 

क्या बताना चाहते है आप?

Bhutiya Kahani | Bhooton Ki Kahani

कैप्टन – जो आज तक कोई नहीं जान सका।

मैं – जो आज तक कोई न जान सका। वह मैं जानकार क्या करूंगा।  

प्लीज ,अब मुझे जाने दें। मैं डर से रुआंसा हो गया। 

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कैप्टन – नहीं, बिलकुल भी नहीं। तुम्हे मुझसे डरने की कोई जरुरत नहीं। सैनिक सबकी रक्षा करते है। मैं भी तुम्हारी रक्षा ही कर रहा हूँ। कैप्टन विनोद के स्वर में कोमलता थी। 

आओ मेरे साथ इस सोफे पर बैठ जाओ। मैं तुम्हे एक कहानी सुनाता हूँ। पूरी कहानी सुनाते ही, मैं खुद तुम्हे तुम्हारे कैम्प तक जीप से छोड़ कर आऊंगा।

तुम अपने कॉलेज कैंप से बहुत दूर आ गए हो। वहां तक अब तुम चलते हुए नहीं पहुँच पाओगे। 

कैप्टन के स्वर में न जाने कैसी आश्वस्ति थी। मैं जाकर उनके बगल में सोफे पर बैठ गया। 

कैप्टन विनोद कहने लगे – दुश्मनों ने धोखे से हमारे अस्पताल को अपना निशाना बनाया।

दुश्मन देश के दो सैनिक हमारे सैनिक की वर्दी में हमारे ही एक घायल सैनिक को लेकर आये। वह घायल था, और हमारे देश की सेना ने उसे बहुत ढूंढा लेकिन नहीं मिला था। 

दुश्मनों ने साजिश के तहत उसे घायल होते ही घुसपैठियों ने कहीं छुपा दिया था। 

अचानक से अपने खोये सैनिक को अपने हॉस्पिटल में देख कर सभी खुश हो गए। और बिना अधिक जांच–पड़ताल किये हॉस्पिटल के गेस्ट रूम में घायल को लेकर आने वाले छद्म वेष धारियों को ठहरने की इजाजत दे दी।

अभी उस सैनिक का इलाज चल ही रहा था की जोरों का ब्लास्ट हुआ। और एक ही पल में पूरा हॉस्पिटल एक पल में खंडहर बन गया। 

मैने बोला – लेकिन हॉस्पिटल तो आज भी अपनी शानदार स्थिति में है।

मेरी बात को अनसुना कर कैप्टन विनोद ने अपनी बात जारी रखी। 

कोई नहीं बचा उस ब्लास्ट में। दीवार पर पड़े खून के छींटे भी उस ब्लास्ट में मारे हॉस्पिटल के कर्मचारियों के है।

मैने फिर कहा – हाँ, पर यह हॉस्पिटल तो मुझे खंडहर नहीं दिख रहा।

जवाब में कैप्टन विनोद के चेहरे पर रहस्यमयी मुस्कान फ़ैल गई और उनका चेरा अजीब से भावों से भर गया। 

मैं उनके चेहरे को देखकर अन्दर तक दहल गया। फिर भी , मैने हिम्मत करके पूछा – आप ब्लास्ट में बच कैसे गए?

मेरी बात सुनते ही कैप्टन ठहाका लगा कर हंस पड़े।  और मुझ पर एक भरपूर नजर डालते हुए कहा – यह कहानी आज से मात्र 10 साल पहले की है। मैं तो आज से 50 साल पहले ही मर चुका हूँ। 

इसके आगे उनहोंने क्या कहा, मुझे कुछ नहीं मालुम। 

मुझे अपने चेहरे पर गीलेपन का अहसास हुआ तो मैं जैसे नींद से जागा। मेरे सभी सहपाठी और टीचर मेरे चारों तरफ खड़े थे।  
जैसे ही मैंनेआँख खोली। मेरे सर ने कहा – शुक्र है। तुम्हे होश आ गया।

मैने बोलै - तो क्या मैं बेहोश था? 

टीचर - हाँ, तुम जंगल में न जाने कहाँ भटक गए थे। 

जब सभी वापस लौट आये और तुम नहीं आये, तो हम सभी मिलकर तुम्हें ढूँढने निकल गए। 

बहुत दूर जाने के बाद हमे एक जीप आती दिखाई दी। जिसमें एक आर्मी अफसर तुम्हे पीछे की सीट पर सुलाए हुए हमारे कैम्प को ढूंढते हुए आ रहे थे। 

उनहोंने हम सबको भी अपनी जीप पर बैठाया और कैम्प तक छोड़ कर वापस गए। 

हमने उन्हें रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन वे यह कहते हुए चले गए की अभी नहीं रुक सकता। एक जरुरी काम है। 

जब हमने उनको तुम्हारे बेहोश होने और उन तक तुम्हारे पहुँचने के बारे में पूछा तो बोले – सोमेश ही सारी बात बताएगा और जो भी बताएगा वह एक- एक अक्षर सच होगा। 

सब उत्सुकता से मेरी और देखने लगे। 

मैंने धीमे स्वर में पूछा - क्या उनका नाम कैप्टन विनोद था ?

सर ने हाँ  में सर हिलाया। 

मैने सबको उधर चलने को कहा, जहासे सभी ने कैप्टन को आते हुए देखा था। 

पहले तो सर जाने को तैयार नहीं हुए लेकिन मेरे बहुत कहने पर वे मान गए। 

सुबह होते ही हम उधर गए। 

मैं उस जगह पर पहुँच कर आश्चर्यचकित हो गया। क्योकि वहाँ एक अधजला खंडहर था। वही पर एक टूटे पत्थर पर लिखा था "आर्मी हॉस्पिटल"

मैंने सभी को पूरी बात बताई। 

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